हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि का व्यापक प्रचार तथा हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के उद्देश्य से एवं राष्ट्रीय विविधता में एकता को बल देने के हेतु कुछ उत्साही हिन्दी प्रेमियों द्वारा तथा स्व. भानुकुमार जैन तथा स्व. श्रीमती रखमाबाई तल्लूर जी के प्रमुख सहयोग से मुम्बई हिन्दी – विद्यापीठ की स्थापना 12 अक्तूबर 1938 को हुई । इस समय आजादी की लढाई अंग्रेजों के विरोध में जोर पकडी़ हुई थी । आरंभ में मारवाडी़ विद्यालय, मुंबई – 4 में इसका कार्यालय कार्यान्वित रहा । कछुए के चाल से गणमान्य उद्योगपति, समाज सेवियों के सहयोग पर छोटा-सा यह पौधा फलता-फूलता गया ।
पहली अनमोल आर्थिक सहायता श्री. रामनाथ आनंदीलाल पोदार जी से सानुग्रह प्राप्त हुई । 1941 तक मुंबई नगर में अपनी पहचान बनायी । मुंबई से हटकर शेष महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, कर्नाटक में विद्यापीठ के केंद्र स्थापित हुए ।
पराधिन के क्षणों से लेकर देश के स्वाधीन होने तक मुम्बई हिन्दी – विद्यापीठ के कर्मठ प्रचारकों को राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए जो जी-तोड़ मेहनत करनी पडी़ वह उतनी ही महत्वपूर्ण थी, जितनी की राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए किया गया संघर्ष अपना महत्व रखता है । आजादी मिलने के बाद भी हिन्दी को राष्ट्रभाषा का उचित स्थान दिलाने के लिए मुम्बई हिन्दी – विद्यापीठ सक्रिय संघर्ष करता रहा और करता रहेगा । मुद्रणालय का रूप बदलकर ऑफसेट मशिन ने लिया । छपाई का काम सुंदर ढ़ंग से हो रहा है । पुस्तक प्रकाशन, विद्यापीठ के पाठ्यपुस्तक आदि छपाई के काम विद्यापीठ में होते है । विद्यापीठ का कार्यालय 1952 में आनन्द नगर, ताडदेव, मुंबई – 7 में स्थानांतरित हुआ । एक दशक के बाद विद्यापीठ के मान्यस्तर तथा उपाधि परीक्षाओं को मानदंड निर्धारित करते हुए भारत सरकार ने मान्यता प्रदान की । आज भी स्थायी रूप से मान्यता है । तदुपरांत महाराष्ट्र समेत गुजरात, गोवा, कर्नाटक आदि राज्य सरकारों से परीक्षाओं को समकक्ष मान्यता प्राप्त हो गयी ।
1968 में मुम्बई हिन्दी – विद्यापीठ का प्रधान कार्यालय उद्योग मंदिर नं. 1, माहिम (पश्चिम), मुंबई – 16 में स्थानांतरित हुआ । जो आज तक कार्यान्वित है ।